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दर्द-ए-बयाँ

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भाषायी लिपियों के माध्यम से काव्यात्मक भाषायी साहित्य के किसी भी साहित्य को भाषायी साहित्य के ऐतिहासिक पृष्ठों पर प्राणिय भावों को शब्दों के माध्यम से प्रत्येक रचनाकार की भावनात्मक इच्छाएँ प्राचीन काल से ही समय के प्रत्येक काल खन्डों में निरन्तर रूप से अपने मनो भावों को उकेरने की, यानि कि विचारों को किसी भी शब्दाबली में परिवर्तित करके स्वेत कागज़ के पृष्ठों पर अंकित करने की अभी तक भी रही है। इसी मुख्य साहित्यक परिधि के दायरे में निहित होकर भाषायी साहित्य की काव्यात्मक शैली 'गजल' का प्राचीन काल के समय से ही जन्म साहित्य की अरबी भाषा के धुमक्कड़ी व रमणीकिय समाज के धरातल से करीब डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व में अरब देशों के जमीनी धरातल पर हुआ था जिसका अभी तक भी अपने देश भारत की मुख्य राष्ट्रीय हिन्दी भाषा की देवनागरी के अन्दर पदार्पण नहीं हुआ है जोकि अभी तक भी वंचित रहा है मगर देश के कुछ रचनाकारो ने इस शैली के पदार्पण की कोशिशे करना वर्तमान समय मे जारी कर दी है और शुरूआत होने लगी है।अपने देश के हिन्दी काव्यात्मक साहित्य के ऐतिहासिक पृष्ठो पर 'गजल' शैली के साहित्यिक लेखन की कमी को अपनी पहली दृष्टि में रखते हुये, मैंने साहित्य की इस पुरानी शैली 'विधा' के पुराने मापदन्डों, मानकों में से कुछ को अपनाते हुये एवं कुछ को नकारते हुये इस विधा के साहित्य को अपनी देवनागरी के पृष्ठों पर लाने के लिये एक सुक्षम प्रयास करके अंश मात्र कोशिश की है।अपने इसी प्रयास को सफलतापूर्वक पूरा करने को मैंने अपने द्वारा रचित पुस्तक 'दर्द-ए-बयाँ' के पृष्ठों पर अँकित रचनाओं को अधिक रूचिकर रोचक व मनोहारी बनाने को पुस्तक की काव्यात्मक रचनाओं में कई नये प्रयोग किये है, सभी रचनाओ को विषयों पर केंद्रित करके अपनी मातृ भाषा हिन्दी की शब्दाबली में लिख कर अपनी नव रचित पुस्तक 'दर्द-ए-बयाँ' में समाहित करके देश के सभी सुधी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसकी सभी रचनायें सुरमयी, संगीतमयी, लयमयी, बाहरमयी है एवं सभी कविता मयी रचनायें रागात्मकता व बहरात्मकता से परिपूर्ण हैं। और हिन्दी भाषायी साहित्य के ऐतिहासिक पृष्ठांकन को पूर्ण रूप से पूरा करती हैं।

पुस्तक विवरण

लेखक :
मंगल सिंह ' मंगल'
प्रकाशक :
पंख प्रकाशन
प्रकाशित तिथि :
प्रकाशित हो चुकी है |
भाषा :
हिंदी
पृष्ठों की संख्या :
140
ISBN :
978-93-94878-22-8

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